Saturday, November 26, 2011

मातृभाषा और अंग्रेजी

अभी अभी भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की कविता "मातृभाषा के प्रति" पढ़ी और फिर ये सोचा की क्यों ना अपनी मातृभाषा में पहला ब्लॉग लिख दिया जाए. कविता काफी अच्छी लगी, ख़ासतौर पे ये पंक्तियाँ -

"अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।"

ये कविता उन लोगो  को जरूर पढनी चाहिए जो अपनी मातृभाषा में बात करने में हीनता का अनुभव करते हैं. साथ ही उन लोगों को भी जो अंग्रेजी भाषा का विरोध बिना कुछ  सोचे समझे करते रहते हैं. खड़ी बोली के जनक भी अपनी उस कविता में, जिसमे उन्होंने मातृभाषा की वकालत की है, ये कहना नहीं भूलते की अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है. हमारे राष्ट्र में कई भाषाएँ बोली जाती हैं और किसी भी  मनुष्य के लिए यह संभव नहीं है की वो इस राष्ट्र की हर भाषा समझ ले. अतः यह  देखते हुए की भारत में अंग्रेजी ही हर राज्य में समझी जा सकती है यह जरूरी है की ज्यादातर लोग इस भाषा को सीखें, भले ही आम जीवन में हम अपनी मातृभाषा का प्रयोग करें. 

एक तरह से यह भाषा समस्या का समाधान भी होगा और भूमंडलीकरण के इस युग में हमारी शिक्षित पीढ़ी को बेहतर अवसर भी प्रदान करेगा. और हाँ, अंग्रेजी सीखने से अपनी संस्कृति का कोई नाश नहीं होगा. स्वतंत्रता आन्दोलन में कई नेता अंग्रेजी भाषा में शिक्षा प्राप्त किये थे परन्तु वो हमारे आजकल के देसी शिक्षित नेताओं से कहीं ज्यादा संस्कारित थें.   

1 comment:

Ankit said...

Didn't have patience to search for a Hindi keyboard and type in Hindi.

Anyways, I do agree with Bhartendu Haishchandra (conincidently I saw his name today in morning paper. Hindi plays are being organized in Delhi everyday for the next 2 weeks) and you.

We need English but we need Hindi as much if not more. Its a pity that ours is a generation which has failed to master a single language fully. We don't have fully knowledge of any of these language and in my view this lack of mastery over a language in turn puts a limitation on our thinking (I have always felt that new words introduce you to new ideas, feelings, expressions).